कतआत - एक से दस

1
आपकी नज़्र ये कलाम मेरा
भावों के जौहारियों को सलाम मेरा।
आप परखें मुझे कसौटी पर,
इम्तहा है ये सुब्हो-शाम मेरा।
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2
ज़िदगी के होते हैं कई-कई रूप,
कहीं पे छांव है तो कहीं है धूप।
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3
क़यामत तक दे जो साथ कहां ऐसे सनम मिलते हैं,
ख्वाहिश करे खुशियां अपनी किसी की खातिर,
जो कर दे कुर्बानी खुशियां अपनी किसी की खातिर,
दोस्त जहां में ऐसे हमके बहुत ही कम मिलते है।
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4
कांटो के दरमियां जो इक फूल खिला है।
ज़िन्दगी मुलाकातों का सिलसिला है।
तमन्नाओं को देखा है हमने बर्फ सा पिघलते
आंखो को शबनम अश्कों का मिला है।
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5
आधी रात में भी कभी सबेरा होता है।
कटती शाख पे परिंदे का डेरा होता है।
मंज़र हादसों का भी यहां अजीब है यारों
जलते चिराग के नीचे ही अंधेरा होता है।
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6
तसव्वुर में सिर्फ तुम से ही बातें करते हैं।
तेरी यादों से रौशन अपनी रातें करते हैं।
हमारी दीवानगी की इंतहा देखिये ज़रा
बिन तेरे ही तुझसे हम मुलाक़ातें करते हैं।
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7
सहर के एहसास के लिये रातें ज़रूरी हैं।
जज़्बात के इज़हार के लिये बातें ज़रूरी हैं।
कोई यूं ही किसी का नहीं हुआ करता है
इसके लिये भी चंद मुलाक़ातें ज़रूरी हैं।
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8
लोग अपने अपने को अलग छांट रहें हैं।
मज़बह के नाम पर इंसानों को बांट रहे हैं।
ज़रा इनकी नादानी पर तो ग़ौर कीजिये जनाब
ये जिस शाख़ पर बैठे है उसे ही काट रहे हैं।
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9
सपने आंखों में बसाये रखना ।
खुद को मेरे लिये सजाय रखना ।
आना मेरा तो है पत्थर की लकीर
मेंहदी हाथों में तुम सजाये रखना
*

10
आंखों से अश्क का बहना भी ज़रूरी है।
दिल की बात होठों से कहना भी ज़रूरी है।
यूं ही नहीं हो सकता किसी के दर्द एहसास
इसके लिये खुद ज़ख़्म सहना भी ज़रूरी है।
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