अपनी बात


यूं तो कुछ न कुछ लिखने की मुझे शुरु से आदत रही है परन्तु यह मुझ तक ही सीमित रहा है । कभी यह विचार नहीं आया कि लिखी हुई सामग्री को पुस्तक के रुप में सामने लाया जाय । परन्तु कुछ मित्रों के सुझाव पर इस दिशा में ध्यान गया फिर प्रयास शुरु हुआ । जिसका परिणाम आपके कर कमलों में है ।


वैसे तो नई कविता से मैंने लिखना प्रारंभ किया परन्तु धीरे-धीरे मैं ग़ज़लों की ओर झुकता चला गया । मैं ग़ज़लों को लेखन की सबसे प्रभावशाली व सशक्त विद्या मानता हूँ । इसमें चंद शब्दों में बड़ी से बड़ी बात बड़ी आसानी से, असरदार तरीके से कही जा सकती है । दिल के उदगार जितने प्रभावशाली ढंग से ग़ज़लों के माध्यम से सबके सामने रखे जा सकते हैं उतना किसी और माध्यम से नहीं । ग़ज़ल तो दिल की आवाज होती है जो दिल से निकल कर सीधे दिल तक असर करती है । इसे पढ़ने व सुनने वाला बड़ी देर तक इसी में खोया रहता है ।

अक्सर यह विवाद का विषय रहता है कि ग़ज़ल ऊर्दू की विधा है या हिन्दी की । मेरा यह मानना है कि साहित्य की किसी भी विधा को किसी भाषा विशेष की सीमाओं से बांधा नहीं जा सकता है । हां यह जरुर है कि ग़ज़ल का प्रचलन हिन्दी से पहले ऊर्दू में प्रारंभ हुआ । वर्तमान में विभिन्न हिन्दी के गज़लकारों की रचनाओं से यह प्रमाणित हो चुका है कि हिन्दी की ग़ज़लें भी कम प्रभावशाली नहीं है ।

हिन्दी ग़ज़लकारों की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए मैंने भई इस श्रृंखला में एक कड़ी के रुप में जुड़ने का प्रयास किया है । इसमें मैं कितना सफल हूँ इसका निर्णय आपको ही करना है । आपके हर सुझाव का इंतजार रहेगा ।

इस संग्रह को आप तक पहुँचाने में सबसे ज्यादा योगदान डॉ. राजेन्द्र सोनी का रहा है जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया बल्कि इसमें संपादन से प्रकाशन तक सभी स्तर पर मेरा साथ दिया, इसे हेतु मैं इनका आभारी रहूंगा । मैं श्री लक्ष्मी नारायण शर्मा “साधक” जी का भी ह्रदय से आभारी हूँ जिन्होंने कम समय में भी अधिक बातें भूमिका में समाहित किये हैं । ग़ज़ल पर विस्तृत जानकारियां एवं मेरी ग़ज़लों के सौन्दर्य बोध, सामाजिक विषमताओं के विश्लेषण पर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई है । मेरी भावनाओं के पिरत् उनकी लिखित संवेदनाएं मुझे संबल प्रदान किया है । इसके अलावा मैं श्री काविश हैदरी जी का भी आभारी हूं जिन्होंने अपना मूल्यवान सुझाव देकर इसे और आकर्षक बनाया । श्री मुकेश देवांगन का सहयोग को भी मैं विस्मृत नहीं कर सकता ।


अंत में यह संकलन मैं अपने पूज्य माता-पिता को समर्पित करतू हूं क्योंकि उनकी आशीर्वाद के बिना यह प्रकाशन कार्य संभव नहीं था ।


-जयन्त कुमार थोरात

1 टिप्पणी:

Raushan mishra ने कहा…

आपकी रचनाओं को मैंने पढ़ा।सारी ही रचनाएँ काबिलेतारीफ है।अद्भुत श्रीमान❤️❤️❤️