कतआत - इन्क्यावन से साठ

51
दुनिया के झमेलों से दूर आ गया मैं,
ये कब्र भी कितने सुकून की जगह है ।
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52
आसमां ज़मीं पे कभी झुकता नहीं,
वक्त किसी पर कभी रुकता नहीं ।
उम्र भर भी अश्क बहे तो क्या,
पानी आंखों का कभी सूखता नहीं ।
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53
चेहरे पर मुफ़लिसी का निशां देखा ।
बुझते चूल्हों में उठता धुंआ देख ।
ग़रीबों के हाल पर बैठकर हंसने वाले,
इस ज़मीं पर दाग तुमसा न बदगुमां देखा ।
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54
ख्वाब जवानी के सुनहरे होते हैं ।
आंखों पर पलकों के पहरे होते हैं ।
दिल से बंधे रिश्ते कभी टूटते नहीं ।
ये रिश्ते तो खून से भी गहरे होते हैं ।
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55
चलाते हैं तीर जहां वहीं निशाना लगता है ।
इतनी भीड़ के बाद भी ये जग वीराना लगता है ।
मुफ़लिसी के हर दौर से गुजर चुके हैं हम
हमें तो पत्थरों का ही सिरहाना लगता है।
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56
दिल के हर किस्से को आम करता हूँ।
दोस्त हो या दुश्मन सबको सलाम करता हूँ।
वक्त के साथ भुला देते हैं हम लोग जिन्हें,
उन शहीदों को याद रखने का इंतज़ाम करता हूँ।
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57
चेहरे पर कई चेहरे देखे
नींद में ख्वाब सुनहरे देखे।
अचानक घिरी शाम का शबाब ढूंढ़ातो रूख पर जुल्फें घनेरे देखे।
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58
हर शख्स का हम ख्याल रखते हैं।
आपके राह में चश्में-रूमाल रखते हैं।
इस अंजुमन में शरीर हर हस्ती का,
तहे दिल से हम इस्तकबाल करते हैं।
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59
किसी बात का न दिल में मलाल रखना।
ऊंचा मगर अपना इकबाल रखना।
हर चाहत खुद की ज़रूर पूरी करो पर
कुछ ज़रूरतमंदों का भी ख्याल रखना।
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60
रिश्ते की कोई हथकड़ी नहीं होती ।
शुभ-अशुभ कोई घड़ी नहीं होती।
कोशिशों को अपनी कम न करना,
उम्र नाकामी की ज़्यादा बड़ी नहीं होती।
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