कतआत - इकतालीस से पचास

41
चिंगारी आग की वजह होती है ।
बड़ी गहरी समुंदर की सतह होती है ।
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42
समय न होता किसी का, सोच न कल की बात ।
चार दिनों की होती है ये उजियारी रात ।
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43
सब कुछ छूट जाता है सिर्फ चलते हैं नाम
अच्छे सच्चे काज को दुनिया करे सलाम ।
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44
सच्चा साथी मिला तो, जग लिया है जीत,
बुरा वक्त कट जाता है, जब संग हो मीत ।
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45
पूरी नहीं होत है सब सोची हुई आस ।
उतना ही जीवन होत है जितनी लाये सांस ।
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46
वक्त के तूफान से बच सका न कोय,
उतना पैर पसारिये जितनी चादर होय ।
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47
प्रेम रंग के सामने फीके सारे रंग ।
रोक सका न कोई भी प्रीत की सुगंध ।
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48
धूप है तो कहीं छांव भी मिलेगा ।
चलती-चलो कोई गांव भी मिलेगा ।
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49
उठते ही पानी के बुलबुले फूट जाते हैं ।
ज्यादा आंच से दर्पण भी टूट जाते हैं ।
हाथों की लकीरों पर ज्यादा भरोसा ठीक नहीं,
बिना मेहनत के अक्सर भाग्य भी रूठ जाते हैं ।
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50
रूह का नहीं कोई दर है ।
ये तो बिन पत्तियों का शजर है ।
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