भरी दुपहरिया चांद सी शीतल माँ होती है ।
रिश्तों के जंगल में महकती संदल माँ होती है ।
अम्बर हो या पर्वत झुकते इसके कदमों में ।
इस धरती पर तो सबकी जननी माँ होती है ।।
ईश्वर खुदा, नानक, ये तो रचते सृष्टि को ।
पर इन सबको रचने वाली तो माँ होती है ।।
रिश्ते न जाने हम कितने-गढ़ते जाते हैं ।
सब रिश्तों में अपनी सी सिर्फ माँ होती है ।।
प्यार सभी को मिले हैं इसके शीतल आँचल में ।
माँ जैसी तो इस जग में केवल माँ होती है ।
*
लम्हा लम्हा गुज़रती जाती है जिन्दगी
मुठ्ठी की रेत सी सरकती जाती है जिन्दगी ।
सुख ही नहीं दुःखों को भी अपनाना सीखिये
वरना तमाम उम्र तड़पाती है जिन्दगी
अपनी पसंद के रंग से जो चाहे रंग दो इसे
हर रंग में आसानी से रंग जाती है जिन्दगी
सुख और दुख सब इसकी देहलीज पर हैं
दोनों को ही प्यार से अपनाती है जिन्दगी
इसके हर पल को तबियत से जियो यारों
जाय अगर तो फिर नहीं आती है जिन्दगी ।
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