समन्दर कभी आसमां पर नहीं छाते,
ठंड की धूप में कभी साये नहीं भाते ।
परदों को पार रोशनी नहीं कर पाती,
कच्ची नींद में कभी ख़्वाब नहीं आते ।
कुछ सवाल इस क़दर जटिल होते हैं,
कोशिशों पर बी उसके जवाब नहीं आते ।
आसां नहीं ग़म व खुशी में फर्क करना,
हर शाख पर यहां गुलाब नहीं आते ।
-०-
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें